बूंदो की संस्कृति
बूंदो की संस्कृति पुस्तक से साभार जनजागृति हेतु ये माहिती www.vadgam.com पोस्ट की जा रही है !
20.06.2019
गुजरात में जल संचय की सबसे पुरानी प्रणालियां तालाबों वाली थी ! यहां की भौगोलिक बनावट और जलवायु भी तालाबों के अनुकूल थी ! इसलिए हर गांव में एक या दो तालाब तो मिलेंगे ही ! इनका निर्माण पीने के पानी और सिंचाई दोनों की जरूरतों के लिए होता था या फिर ये मंदिर परिसर का हिस्सा हुआ करते थे जैसा कि कच्छ के नारायण सरोवर के साथ है !
आज अनेक तालाब भी समाप्ति की कगार पर है ! अनेक तो पुरी तरह सूख गए है ! और कई के ऊपर तो बच्चे क्रिकेट -फुटबॉल खेलते है ! कई जगहो पर पूरा तालाब ही अवैध कब्जो और निर्माण का शिकार बन गया है और अब वहां तालाब का कोइ चिह्न भी मौजूद नहीं है ! इनकी गिरावट भी सामाजिक समन्वय और मेलजोल में आई गिरावट से जुडी है , क्योंकि पहले स्थानीय समुदाय ही इनका निर्माण और रखरखाव किया करता था ! आज तालाबों का निर्माण और रखरखाव सराकार ने अपने हाथो में ले लिया है ! गांव की पुरानी संस्थाए नष्ट हो चुकी है ! लोग अब तालाबों की गाद साफ करने की जंजट उठाने की जगह टोंटी वाला पानी चाहते है ! सौराष्ट्र का एक ग्रामीण कहेता है पहले तो काम हर आदमी का जिम्मा था , आज किसी का जिम्मा नहीं रह गया !
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प्राचीन भारतीय शासको ने सार्वजनिक हित के लिए सिंचाई सुविधाओं के विकास जैसे जो कार्य किये ! सरकारी प्रयासों से सिंचाई के लिए नहरों के अलावा कुए और तालाब भी बनवाये जाते थे ! महाभारत में युधिष्ठिर को शासन के सिद्धांतो क्र बारे में सलाह देते हुए नारद ने विशाल जलप्लावित जीलें खुदवाने पर जोर दिया है ताकि खेती के लिए वर्षा पर निर्भर न होना पड़े ! बांधो के रखरखाव के प्रति प्राचीन शासको की उत्सुकता कुंतगनी के शिलालेखों से प्रगट होती है जिसमे लिखा है कि कदंब शासक रविवर्मन ने वारियाका गांव में तालाब के बाँध बनानेका आदेश दिया था ! ऐसे सत्कर्मो को बहुत महत्त्व दिया जाता था ! मरम्मत के अलावा तालाब – कुएं खुदवाने के काम को भी गर्व का काम माना जाता था ! सामंत परिवारोंमें जन्मे या सामान्य श्रेणीमे लोगो द्वारा धार्मिक भावना से भी तालाब और कुएं बनवाने के उदाहरण मिलते है !